'आँसू' एक श्रेष्ठ गीतसृष्टि है, जिसमें प्रसाद की व्यक्तिगत जीवनानुभूति का प्रकाशन हुआ है। अनेक प्रयत्नों के बावजूद इस काव्य की प्रेरणा के विषय में निश्चित रूप से कहना कठिन है, किंतु इतना निर्विवाद है कि इसके मूल में कोई प्रेम-कथा अवश्य है। 'आँसू' में प्रत्यक्ष रीति से कवि ने अपने प्रिय के समक्ष निवेदन किया है। कवि के व्यक्तित्व का जितना मार्मिक प्रकाशन इस काव्य में हुआ है उतना अन्यन्न नहीं दिखाई देता। अनेक स्थलों पर वेदना में डूबा हुआ कवि अपनी अनुभूति को उसके चरम ताप में अंकित करता है। काव्य के अंत में वेदना को एक चिंतन की भूमिका प्रदान की गयी है। इसे वियोग और पीड़ा का प्रसार कह सकते हैं। कवि के व्यक्तित्व की असाधारण विजय और क्षमता इसी अवसर पर प्रकट होती है। स्वानुभूति का समाजीकरण इस काव्य के अंत में सफलता पूर्वक व्यजित है।